युगों
युगों से अनेक सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक परिवर्तन की साक्षी रही भारतीय
संस्कृति इक्कीसवीं सदी में नारीवाद की आधुनिक प्रवृतियों को आत्मसात कर रही है l
सैन्धव काल में जो संस्कृति मातृसतात्मक थी वही वैदिक काल में महिलाओं को पुरुषों
के समान शिक्षा , धर्म , राजनीति , सम्पति एवं उतराधिकार के अधिकार प्रदान करती थी
किन्तु उत्तर वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति पुरुषों से हेय माने जाने लगी और
मध्य युग तक आते-आते भारतीय समाज एवं संस्कृति ने जटिल पितृसतात्मक स्वरुप ग्रहण
कर लिया l लिंगभेद के आधार पर स्त्री-पुरुष की भूमिका का निर्धारण कर दिया गया और
नरकृत शास्त्रों ने नारी को गृहबंदिनी , रूढ़ एवं धर्मबन्दिन की नयी परिभाषा में
ढाल दिया l
हमारा
यह आलेख – आधुनिक नारीवाद और भारतीय संस्कृति (Essay On Modern Womanism and Indian Culture in
Hindi ) वर्तमान
परिप्रेक्ष्य में नारी की स्थिति और हमारी संस्कृति का deep analysis है l
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यह
सच है कि नारी प्राचीन युग के अभिशप्त जीवन से निकलकर आधुनिक जीवन की प्रतियोगिता
और स्पर्धा में श्रेष्ठतम स्थान पाने में समर्थ रही है l बावजूद इसके जब भी कोई
महिला अपने कर्मक्षेत्र की लक्ष्मण रेखाओं को लांघकर अपनी पहचान के लिए संघर्ष करती
है तो समाज उसे शंका और अविश्वाश की दृष्टि से देखता है l उसे ‘ घर तोड़ने वाली ‘ या
‘ परिवार तोड़ने वाली ‘ जैसी उपमाओं से विभूषित करता है l
वस्तुतः
21 वीं सदी ‘ स्वतंत्र और सबल प्रस्थिति वाली नारी ‘ की सदी है ; स्त्री के
कर्मक्षेत्र के विस्तार की सदी है किन्तु ज्यों-ज्यों नारी पुरुष प्रधानता की
बेड़ियों को काटकर आगे बढ़ना चाह रही है , त्यों-त्यों पुरातनपंथी मानसिकता के
पुरुषों में बेचैनी हो रही है l इस कारण हमारा समाज संक्रमण के दौर से गुजर रहा है
l “ परम्परा बनाम आधुनिकता “ का द्वन्द जीवन के हर क्षेत्र में दिखाई दे रहा है l
संयुक्त परिवारों का विघटन , बुजुर्ग पीढ़ी की समस्या , बच्चों को पर्याप्त अभिभावकत्व
न मिल पाना , एकाकीपन , तलाक में बढ़ोतरी आदि भारतीय परिप्रेक्ष्य में नए प्रकार की
समस्याएं हैं , जिनके दुष्परिणामों को झेलने के लिए भारतीय जनमानस सांस्कृतिक तौर
पर तैयार प्रतीत नहीं होता है l आज महिलाओं की प्रगतिशील और उत्तरदायित्वपूर्ण
भूमिकाओं के बावजूद उनपर आरोप लगाया जाता है कि वे अपनी स्वतंत्रता का गलत फायदा
उठा रही हैं और समाज में अनुशासनहीनता फैला रही है l ऐसे आरोपों में आंशिक सत्यता
है परन्तु अधिकांश पूर्वाग्रह और दुराग्रह से ग्रसित है l
आज
फिल्म उद्योग में कई अभिनेत्रियाँ हैं जो सोचती है कि महज अंग प्रदर्शन से वे
दर्शकों के बीच अधिक लोकप्रिय हो सकती है इसलिए वे सामाजिक एवं सांस्कृतिक मर्यादा
को लांघकर अंगप्रदर्शन करती है l मॉडलिंग के क्षेत्र में तो स्थिति और भी बदतर है
l मॉडिफाइड कल्चर का यह स्वरुप देश के उच्च संभ्रांत परिवारों में ही नहीं बल्कि
मध्यमवर्गीय परिवारों में भी देखने को मिल रहा है l टीवी , सिनेमाओं द्वारा परोसे
गए आकाशीय सपनों को साकार करने के लिए लड़कियाँ कुछ भी करने को तैयार रहती है l यह
परिदृश्य वास्तव में आधुनिक नारीवाद की उपादेयता पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह हैं l
Note:-
मित्रों , आपका आधुनिक नारी और भारतीय संस्कृति के बारे कुछ कहना है तो comment
जरुर करें l साथ ही यह आलेख अपने अन्य दोस्तों के साथ जरुर share करें l धन्यवाद l
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