कुछ दूर आगे बढ़ने पर उसे युद्ध भूमि से लौटते हुए कंधे पर हथियार लिए हुए एक सैनिक मिला l उस गृहस्थ ने उस सैनिक से बात की और अपनी जिज्ञासा में उससे पूछा कि इस पृथ्वी पर सबसे सर्वोत्तम क्या हो सकता है ?
प्रश्न सुनकर सैनिक ने उत्तर दिया – ‘शान्ति’ ! उसने बताया कि भीषण संघर्ष और विनाश की लीला मैंने अपनी आँखों से देखा है l इस संसार में शान्ति से बढ़कर सुन्दर कुछ भी नही है l गृहस्थ को समझ में आया लेकिन संतुष्ट न हो सका , क्योंकि जितने मुंह उतनी बातें सुनी l निराश होकर वह अपने घर वापस आने की ओर कदम बढ़ा दिया l
दो दिन की प्रतीक्षा के बाद घर में सभी व्याकुल हो रहे थे l घर पहुंचा तो बच्चे उससे लिपट कर रो पड़े l पत्नी सामने भाव-विह्वल-सी खड़ी थी , पुत्र अपने पिता की खोज में दौड़-दौड़ कर थक कर निस्तेज हो चुका था l बेटी की आँखें रो-रो कर लाल हो चुकी थी l उसके पहुँचते ही घर में आत्मीयता का , स्नेह का , गहन श्रद्धा का सागर उमड़ पड़ा l सभी बहुत खुश हुए l यह देखकर गृहस्थ को असाधारण शान्ति का अनुभव हुआ l उसने देखा कि तीनों गुणों का समन्वय तो अपने घर-परिवार में ही है l उसके मुँह से निकल पड़ा , मैं कहाँ भटक रहा था – श्रद्धा , प्रेम और शान्ति , इन तीनों के दर्शन अपने घर में नहीं कर पा रहा था !
अनमोल वचन – जब किसी चीज के गुणों का पता नहीं चलता तो उसकी बुराई होने लगती है l जैसे – भिलनी , हाथी की कीमत नहीं जानती , फिर उसकी बुराई करके मन शांत कर लेती है l लोमड़ी जब अंगूरों तक पहुँच नहीं सकती , तो कह देती है कि अंगूर खट्टे हैं , मैं तो मीठे अंगूर ही खाती हूँ l
याद रखिये – एक आदर्श संन्यासी होने की अपेक्षा एक आदर्श गृहस्थ होना अधिक कठिन है l
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