एक बार एक ब्राह्मण था , जिसकी पत्नी महात्मा बुद्ध की प्रशंसा करते
नहीं थकती थी l शुरुआत में उसने इसे गंभीरता से नहीं लिया l लेकिन , जल्द ही उनकी
पत्नी का बुद्ध के प्रति बढता स्नेह उसके मन में बुद्ध के प्रति ईर्ष्या पैदा करने
लगा l
एक दिन वह वहाँ पहुँच गया जहाँ बुद्ध रहता था l उसने बुद्ध से एक ऐसा
प्रश्न पूछने की ठानी जिससे बुद्ध चकित और अपमानित हो जाता l इस प्रकार वह अपनी
पत्नी को दिखाना चाह रहा था कि बुद्ध के लिए उनकी प्रशंसा गलत कैसे था l
“ख़ुशी और शांति से जीने के लिए हमें किस चीज को मारने में सक्षम होना
चाहिए ?” – ब्राह्मण पति ने बुद्ध से पूछा l
“ख़ुशी और शांति से जीने के लिए ,” बुद्ध ने जवाब दिया , “किसी को उसके
क्रोध को मारना जरूरी है , क्योकि क्रोध स्वयं ही सुख और शांति को मार डालता है l”
बुद्ध का जवाब बहुत ही सरल था लेकिन यह उस क्रोधित व्यक्ति को संतुष्ट
और प्रेरित कर गया l बुद्ध के जवाब पर परिलक्षित होकर वह एक भिक्षुक और
मठवासी बन गया l
जब उनके छोटे भाई ने यह सुना कि उसका बड़ा भाई
एक मठवासी बन गया है तो वह गुस्से से आग बबूला हो गया l वह बुद्ध का मुकाबला करने
के लिए निकल पड़ा l वहाँ पहुँच कर उसने बुद्ध को गन्दी गालियाँ देनी शुरू कर दी l
गंदे शब्दों का वार जब रुका तो बुद्ध ने उनसे पूछा – “ जब आपके घर कोई मेहमान आता
है और आप उसे खाने के लिए भोजन देते है , लेकिन वह बिना कुछ खाए ही आपको वही भोजन
वापस लौटा देता है तो अंत में वह भोजन किसके लिए रह जाता है ?” ब्राह्मण ने
स्वीकार किया कि वह भोजन उसके लिए या उसके परिवार के लिए ही रह जाता है l तब बुद्ध
ने पुनः जवाब दिया – “उसी प्रकार मैंने आपके गंदे शब्दों को स्वीकार नहीं किया है
और यह आपके लिए ही रह जाता है l” उस आदमी को अपनी गलती का एहसास हो गया और बुद्ध
के द्वारा दी गई सीख के कारण उसके मन में बुद्ध के लिए असीम श्रद्धा उत्पन्न हो
गया l वह भी अपने बड़े भाई की तरह ही भिक्षुक और मठवासी बन गया l
मठ के अन्दर अन्य भिक्षुकों को यह सब दृश्य
आश्चर्यचकित कर रहा था l भिक्षुकों ने भगवान बुद्ध से जानना चाहा कि एक निंदनीय
भाई उनके शरण में कैसे आ गया l भगवान बुद्ध ने कहा – “क्योंकि मैं गलत के साथ गलत
जवाब नहीं देता , कई लोग हैं जो मुझमें शरण लेने के लिए आते हैं l”
“जो
मनुष्य सदा बिना क्रोध , निंदा ,हिंसा और दण्ड के रहता हो और जिसके धैर्य की शक्ति
एक सैनिक के शक्ति के बराबर हो , उसे ही मैं पवित्र आदमी कहता हूँ l” – महात्मा
बुद्ध
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