एक मूर्तिकार था l वह मूर्तियाँ बनाता था l अपने बच्चे से भी कहता था –“बेटे !
तुम भी मूर्तियाँ बनाओं l” बच्चा अपने बाप के कहने के मुताबिक मूर्तियाँ बनाने लगा
l बाप की मूर्तियाँ दो रूपये में बिकीं और बेटे की मूर्तियाँ तीन रूपये की बिकीं;
चार रूपये की बिकीं; पाँच रूपये की बिकीं; पंद्रह रूपये की बिकीं l बाप ने फिर कहा
–“बेटे ! इसमें यह सुधार करना चाहिए; यह ध्यान देना चाहिए l अर्थात अपने काम में
ज्यादा-से-ज्यादा तन्मयता, दिलचस्पी, और गहराई पैदा करना चाहिए l” बाप बेटे को
सीखा रहा था लेकिन बेटा बाप से झल्ला पड़ा l बोला –“आपकी मूर्तियाँ दो रूपये में
बिकती थीं और हमारी पंद्रह रूपये की बिकती हैं और आप है कि नुक्ताचीनी करते हैं l”
बाप सिर पर हाथ रखकर बैठ गया l बोला –“बेटे ! अब तेरी उन्नति का रास्ता बंद हो
गया l मैं चाहता था कि पंद्रह रूपये की मूर्ति पचीस रूपये में क्यों नहीं बिके ?
लेकिन अब पंद्रह से चौदह में बिकेगी; तेरह में बिकेगी; बारह में बिकेगी l तूने
समझा कि अब इस काम में मन लगाने की, दिलचस्पी लेने की, तबीयत लगाने की जरुरत नहीं
है l जो कुछ चल रहा है, सो ठीक है l”
मित्रों ! हमारी और आपकी मान्यता यही है कि जो
कुछ चल रहा है, सो ठीक है l उसमें हम गहराई नहीं पैदा करना चाहते; उसमें हम
दिलचस्पी नहीं लेना चाहते l हम उसकी क्वालिटी नहीं बढ़ाना चाहते l हमें क्या करना
चाहिए, प्रतिक्रिया जरूर दे l
नोट:-अगर आपके पास भी कोई
प्रेरक प्रसंग या कथा है तो आप हमे भेज सकते है l मौलिक रचनाओं को प्राथमिकता के
साथ प्रकाशित की जाएगी l प्रकाशन में अपना नाम,फोटो और वेबसाइट लिंक (यदि कोई है)
तो जरुर भेजें l email करें – welovehindi@gmail.com
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